Wednesday, 4 January 2012

nazam



सुबह का वक़्त 
जब ताजगी लिए 

तेरे दरवाजे तलक खड़ा हो
और तेरे ज़हन में 

सोच के गुब्बार फूंट रहे हों
एक महकी महकी सी नज़्म
कागज के टुकड़े पे
उतारके   रख   लेना 

जिन्दगी जब भी ज़रा  डवां-डोल सी हो 
इस नज़्म का हाथ पकड़ लेना
चुप चाप सी कड़ी कतारों से
लफ़्ज़ों के दो घूंट
अपने सूखे हुए लबो पे रख लेना 

मुझे यकीं हैं
तेरी नज़र में  कई रास्ते महकने लगेंगे


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