सुबह का वक़्त
जब ताजगी लिए
तेरे दरवाजे तलक खड़ा हो
और तेरे ज़हन में
सोच के गुब्बार फूंट रहे हों
एक महकी महकी सी नज़्म
कागज के टुकड़े पे
उतारके रख लेना
जिन्दगी जब भी ज़रा डवां-डोल सी हो
इस नज़्म का हाथ पकड़ लेना
चुप चाप सी कड़ी कतारों से
लफ़्ज़ों के दो घूंट
अपने सूखे हुए लबो पे रख लेना
मुझे यकीं हैं
तेरी नज़र में कई रास्ते महकने लगेंगे
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