ROUGHLY A POEM
Sunday, 11 May 2014
छाया
ये बड़ी बड़ी इमारतों कि छाया
रोज पड़ती है मेरे घर पे ,
किसी खिड़की
से वो भी तो देखे ,
मैं देखूं उसे
अपने घर कि किसी दीवार पे
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