ROUGHLY A POEM
Thursday, 5 September 2013
शब्द
कहाँ उलझी हुयी हो तुम
व्यंजन और मात्रायों के
भूल-भुलैया
में
इनका अपना यथार्थ है
जीवन के यथार्थ से परे .
तुझे "आप " से "तू "
तक आने में बरसों लगे हैं।
मुझ तक पता नहीं
शायद कब पहुँचो गी
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