बालकनी में
गमलो में लगे पौधे
लगते हैं काफ्का के किसी उपन्यास के किरदार,
अस्तित्व है भी और नहीं भी
पत्तियों का ज्यादा हरा होना
और टहनियों का गीला रहना
एक अजनबी उदासी है ,
उलझनों से भरा
जैसे किसी अदालत की कचेहरी में खड़ा हो
और ये भी न पता हो की गुनाह क्या है,
काफ्का खुद यहाँ आए तो बताये इसको
इसकी कहानी,
हर रोज़ सुबह एक ब्राह्मण धोता है अपने पाप
पौधों में पानी डालकर,
ये ब्राह्मण काफ्का को नहीं समझता
न ही इसे ये पता है
ये पौधों को सांस दे रहा है या गुलामी
ये वही चौकीदार है
जिसका जिक्र
काफ्का ने एक उपन्यास में किया था.
गमलो में लगे पौधे
लगते हैं काफ्का के किसी उपन्यास के किरदार,
अस्तित्व है भी और नहीं भी
पत्तियों का ज्यादा हरा होना
और टहनियों का गीला रहना
एक अजनबी उदासी है ,
उलझनों से भरा
जैसे किसी अदालत की कचेहरी में खड़ा हो
और ये भी न पता हो की गुनाह क्या है,
काफ्का खुद यहाँ आए तो बताये इसको
इसकी कहानी,
हर रोज़ सुबह एक ब्राह्मण धोता है अपने पाप
पौधों में पानी डालकर,
ये ब्राह्मण काफ्का को नहीं समझता
न ही इसे ये पता है
ये पौधों को सांस दे रहा है या गुलामी
ये वही चौकीदार है
जिसका जिक्र
काफ्का ने एक उपन्यास में किया था.
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