Sunday 8 January 2012

   टीवी के चैनल बदलते बदलते 
कह  दिया उसने सब कुछ 

 मैंने अपनी सोच लपेटी 
 जूते पहने 
 परन्तु वहीँ बैठकर 
तसमे  बाँधने का हक़ खो दिया था मैंने 
रास्ते भर में 
दो बार  ठंडी साँसे ली 
दो चार बार  थूका फुटपाथ पे ,
सीडियां उतरते उतरते 
मैंने भी निश्चय कर लिया 
रिक्शेवाले से पूछा उसकी बीवी का हाल 
लोकल अखबार ख़रीदा  
तीन  निधन सूचनाये 
पढ़ कर मिल गयी सात्वना 
रोजगार वाला प्रष्ठ खोला 
दो चार गोले लगाये 
कल के दिन का रोज गार मिल गया ..

Wednesday 4 January 2012

nazam



सुबह का वक़्त 
जब ताजगी लिए 

तेरे दरवाजे तलक खड़ा हो
और तेरे ज़हन में 

सोच के गुब्बार फूंट रहे हों
एक महकी महकी सी नज़्म
कागज के टुकड़े पे
उतारके   रख   लेना 

जिन्दगी जब भी ज़रा  डवां-डोल सी हो 
इस नज़्म का हाथ पकड़ लेना
चुप चाप सी कड़ी कतारों से
लफ़्ज़ों के दो घूंट
अपने सूखे हुए लबो पे रख लेना 

मुझे यकीं हैं
तेरी नज़र में  कई रास्ते महकने लगेंगे