Friday 29 March 2013

वक़्त


कमरे में चादर और ख्वाबों में उलझा 
बेवक्त बे वजह उल्साया रहता था बिस्तर पे 
कल अहसास हुआ 
जब चौराहे पे आधा घंटा बस का इंतज़ार करना पड़ा 
जिन्दगी सड़क के दोनों तरफ 
बीडियों के धुएं , गर्द से भरे कुल्चों 
और साइकिल  के लगते पंक्चर  के साथ साथ 
बिना किसी शिकन के 
इस नंगी धुप में 
गरम सासों से 
वक़्त के साथ चल रही 

खुरदरी कविता


तुझे न समझने  के प्रयास में ,
तुझे समझने का मौका मिला 
उग नहीं जाता जैसे 
मटर का पौधा 
घर के पिछवाड़े 
जहाँ 
बूढी नौकरानी 
अपने  कागजी और सिकुड़े हाथों से 
मैले कपडे धोती है 

TRANSLATING A.K.RAMANUJAN

excerpts from father's wisdom -रामानुजन 

 अपने बालों को कंघा करो 
तुम्हे चिंता नहीं करनी  चाहिए निराशा की 
निराशा एक अजीब बिमारी है 
मैं सोचता हूँ 
 ये बीमारी पेड़ों को भी होती है 

केवल दिन 
ही आधुनिक शैली का है 
रात,
 प्राचीन समय में भी 
प्राचीन थी 


केवल मूर्तिकला साबित करती है की 
मूर्तियाँ सम्भोग करती है 
पत्थर के साथ ,
तब भी
 जब लोग देख रहे होते हैं 

खुरदरी कविता



बारिश होती है तो 
खड्डों में जमती हैं पानी की महफ़िलें 
और मुसीबत घास की 
बेचारा गर्दन उठा उठा के बचता है डूबने से 
एक कोने में एक छोटे से गमले में 
जहाँ किसी की कभी नज़र नहीं गयी 
तैरती है सुपारी की एक पुडिया 
मैं कमरे में बैठा 
बारिश का मज़ा भी लेना चाहता 
और भीगना भी नहीं चाहता 
जिन्दगी भला कोई सिक्का 
तो नहीं जो जेब में खनकता रहे 

खुरदरी कविता

इतना  आसान नहीं 
ठन्डे पानी से नहाकर 
तोलिये से रात को पोंछ देना 
कमर में दर्द रहता है 
रात भर की चुप्पी का 
और गर्दन में अकड्पन
इक ही स्थिति में 
एक ही बात से उलझे रहने से 
बस एक दायीं बाजु को 
किसी बात की चिंता नहीं 
रात भर अकड़ के 
सोयी रही 
सुबह हिलाने से भी नहीं हिलती 
रात के बचे बिस्किट 
में अब ही है रात की सीलन 
कुछ टुकड़े जमीं पे गिरे थे 
रात की वो हड्डियाँ 
किड़ियाँ उठा के ले गयी 
इतना आसान नहीं 
वक़्त के कपड़े बदलना 
रात के काले कपड़े उतारकर 
दिन एक चमकीले कपड़े पहना देना 
मिलावटी शराब की तरह 
दिन के सर में दर्द करती है दोपहर तक 

खुरदरी कविता

इतना  आसान नहीं 
ठन्डे पानी से नहाकर 
तोलिये से रात को पोंछ देना 
कमर में दर्द रहता है 
रात भर की चुप्पी का 
और गर्दन में अकड्पन
इक ही स्थिति में 
एक ही बात से उलझे रहने से 
बस एक दायीं बाजु को 
किसी बात की चिंता नहीं 
रात भर अकड़ के 
सोयी रही 
सुबह हिलाने से भी नहीं हिलती 
रात के बचे बिस्किट 
में अब ही है रात की सीलन 
कुछ टुकड़े जमीं पे गिरे थे 
रात की वो हड्डियाँ 
किड़ियाँ उठा के ले गयी 
इतना आसान नहीं 
वक़्त के कपड़े बदलना 
रात के काले कपड़े उतारकर 
दिन एक चमकीले कपड़े पहना देना 
मिलावटी शराब की तरह 
दिन के सर में दर्द करती है दोपहर तक 

Tuesday 26 March 2013

खुरदरी कविता


तुम इस छिपकली जैसी जीभ से 
जब मीठे शब्द बोलते हो 
यूँ लगता है किसी के जूते पोलिश करते हो 
तेरी आवाज़ में 
पुराने मौजो की गंद आती है 
जो शब्द तेरे बोलने से पहले ही 
तेरे थूक में  डूब जाते हैं 
असल में वो तेरी औकात है 

TIMIDNESS




My face is enamel
For my timid self,
Haven’t you  seen  ?
Courage in my polythenic eyes ,
Anger streaming from my piggish nostrils ,
And holding my lips tightly,
As  uncorded  pyjama on a thin waist
 I am just a balloon ,
A single prick 
And
I will burst out,
With my timidness .

POEM


जब ये अहसास हो जाता है की 
आपने अपने आप को धोखा दिया है 
फिर आप एक अंतिम रसम निभाते हो 
किसी  उदास कोने में सटकर  बैठते  हो 
पाँव से लेकर सर तक 
एक झनझनाहट  अनुभव करते हो 
और एक सांस में तब तक रोते हो 
जब तक 
अपना चेहरा घुल नहीं जाता धुंधलेपन में
और अपने भीतर  से
 सात्वना की कोई आवाज नहीं सुन लेते 

Saturday 23 March 2013

navel shaped god



भगवान् नाभि  के आकार का है 
इसके बीज हवा में 
और 
ये  फैलता है बातों  से 
पैदा नाभि में होता है 
बच्चे के पैदा होने से पहले 
माँ की नाभि में होता है 
जिस दिन बच्चा 
 शरमाने  लगता है अपने नंगेपन से
उसी दिन ये बीज होता है अंकुरित 

मेरा एक खास दोस्त 
 बड़ा डरता है शिव जी से
हमेशा नाभि में दूध डालके रखता है 
पिछली नागपंचमी पे जो सांप मरे 
वो यही दूध पीकर   मरे थे 

मेरी चाची को 
जयादा विश्वास है 
सर्फ एक्सेल से संदूर और केसर पे 
नाभि में हमेशा रखती है 
कहती है
 धुल जाते है 
 सारे पाप
मुझे चाची के नाम से जायदा   याद रहता है 
उसका वज़नदार डरावना माथे का टिका

मेरी एक और  मित्र 
जो उन लोगों में से है 
जो जानते है की 
 नहीं डरना चाहिए छिपकली से
परन्तु फिर भी डरते हैं 
नाभि में भविष्य का बोझ ले कर चलती है 
और दिन गुजरते हैं 
 एक गर्भवती औरत की तरह 
कभी बार ये सोचा 
की उसकी नाभि में उतर के 
ये सब कचरा निकाल दूँ 
फिर सोचता हूँ 
बर्तन बदलने से
 कहाँ आदते  बदलती हैं 
जिनकी नाभि में मैल होती है 
मेरे ख्याल से
 वो सबसे अच्छे इंसान होते है