Friday 29 March 2013

खुरदरी कविता

इतना  आसान नहीं 
ठन्डे पानी से नहाकर 
तोलिये से रात को पोंछ देना 
कमर में दर्द रहता है 
रात भर की चुप्पी का 
और गर्दन में अकड्पन
इक ही स्थिति में 
एक ही बात से उलझे रहने से 
बस एक दायीं बाजु को 
किसी बात की चिंता नहीं 
रात भर अकड़ के 
सोयी रही 
सुबह हिलाने से भी नहीं हिलती 
रात के बचे बिस्किट 
में अब ही है रात की सीलन 
कुछ टुकड़े जमीं पे गिरे थे 
रात की वो हड्डियाँ 
किड़ियाँ उठा के ले गयी 
इतना आसान नहीं 
वक़्त के कपड़े बदलना 
रात के काले कपड़े उतारकर 
दिन एक चमकीले कपड़े पहना देना 
मिलावटी शराब की तरह 
दिन के सर में दर्द करती है दोपहर तक 

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