Saturday 25 May 2013

existence

क्यों ना अस्तित्व को चाय की चुस्कियों में घोल दे 
तेरे शब्दों की दुर्घटनाए 
मेरी जीभ का फिसलना 
मेरे कल का भरम 
और 
हमारी चेतना का झगड़ा 
क्या पता 
हमें मौका दे दे
वक़्त की इस बईमानी चाल के खिलाफ ,
अस्तित्व की एक आदत है 
पुराने लोहे की तरह
इसे जंग हर हाल में लगता है
रेशमी बिस्तर हो
या फुटपाथ हो
यार की बाहें हो
या फिर
अकेले रहने का शौंक ,
अस्तित्व
या घिसता है
या घुलता है
या फिर जंग लगता है ,
प्याज की तरह है
छिलके उतरते जायेंगे अंत तक
हाथ कुछ नहीं आएगा
सिवा एक कडवी गंध के सिवा ,
`चाय की चुस्कियों के साथ तुम कुछ बातें करो
हमारा वक़त से झगडा है
इस से पहले
ये हमें गुजारे
हम इसे गुजारते हैं

death of my solitude

Before i settle myself
in the warmth of your arms 
And u kiss me abruptly 
let me mourn the death of my solitude 
i know 
i am free no more
now 
my self is stitched to your skin
And 

..... the ardor of your voice
in
my breath

kavita

फेफड़े फैलायो 
शुद्ध हवा की फूंके मारो 
अपने अपने हिस्से का असमान संभालो 
ये प्रदूषण से फटने वाला है