बारिश होती है तो
खड्डों में जमती हैं पानी की महफ़िलें
और मुसीबत घास की
बेचारा गर्दन उठा उठा के बचता है डूबने से
एक कोने में एक छोटे से गमले में
जहाँ किसी की कभी नज़र नहीं गयी
तैरती है सुपारी की एक पुडिया
मैं कमरे में बैठा
बारिश का मज़ा भी लेना चाहता
और भीगना भी नहीं चाहता
जिन्दगी भला कोई सिक्का
तो नहीं जो जेब में खनकता रहे
खड्डों में जमती हैं पानी की महफ़िलें
और मुसीबत घास की
बेचारा गर्दन उठा उठा के बचता है डूबने से
एक कोने में एक छोटे से गमले में
जहाँ किसी की कभी नज़र नहीं गयी
तैरती है सुपारी की एक पुडिया
मैं कमरे में बैठा
बारिश का मज़ा भी लेना चाहता
और भीगना भी नहीं चाहता
जिन्दगी भला कोई सिक्का
तो नहीं जो जेब में खनकता रहे
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