भगवान् नाभि के आकार का है
इसके बीज हवा में
और
ये फैलता है बातों से
पैदा नाभि में होता है
बच्चे के पैदा होने से पहले
माँ की नाभि में होता है
जिस दिन बच्चा
शरमाने लगता है अपने नंगेपन से
उसी दिन ये बीज होता है अंकुरित
मेरा एक खास दोस्त
बड़ा डरता है शिव जी से
हमेशा नाभि में दूध डालके रखता है
पिछली नागपंचमी पे जो सांप मरे
वो यही दूध पीकर मरे थे
मेरी चाची को
जयादा विश्वास है
सर्फ एक्सेल से संदूर और केसर पे
नाभि में हमेशा रखती है
कहती है
धुल जाते है
सारे पाप
मुझे चाची के नाम से जायदा याद रहता है
उसका वज़नदार डरावना माथे का टिका
मेरी एक और मित्र
जो उन लोगों में से है
जो जानते है की
नहीं डरना चाहिए छिपकली से
परन्तु फिर भी डरते हैं
नाभि में भविष्य का बोझ ले कर चलती है
और दिन गुजरते हैं
एक गर्भवती औरत की तरह
कभी बार ये सोचा
की उसकी नाभि में उतर के
ये सब कचरा निकाल दूँ
फिर सोचता हूँ
बर्तन बदलने से
कहाँ आदते बदलती हैं
जिनकी नाभि में मैल होती है
मेरे ख्याल से
वो सबसे अच्छे इंसान होते है
No comments:
Post a Comment