Friday, 29 March 2013

वक़्त


कमरे में चादर और ख्वाबों में उलझा 
बेवक्त बे वजह उल्साया रहता था बिस्तर पे 
कल अहसास हुआ 
जब चौराहे पे आधा घंटा बस का इंतज़ार करना पड़ा 
जिन्दगी सड़क के दोनों तरफ 
बीडियों के धुएं , गर्द से भरे कुल्चों 
और साइकिल  के लगते पंक्चर  के साथ साथ 
बिना किसी शिकन के 
इस नंगी धुप में 
गरम सासों से 
वक़्त के साथ चल रही 

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