भगवान्
दीमक की एक प्रजाति है
जो लगता है उन दिमागों में
जो नरम और बेजान लकड़ी से बने है
रोज खाता रहता है थोडा थोडा
जैसे भेंस की चमड़ी से
लहू चूसते है चिचड़
भेंस की तरह आदमी भी हो जाता है आदि
फिर कष्ट स्वाद में बदल जाता है
जिन्दगी घिसती है फिर
एक पत्थर से दुसरे पत्थर तक
अगरबतियाँ जलाने में,
आरती करने के वक़्त
ये दीमक ज्यादा भूखे होते हैं
दीमक की एक प्रजाति है
जो लगता है उन दिमागों में
जो नरम और बेजान लकड़ी से बने है
रोज खाता रहता है थोडा थोडा
जैसे भेंस की चमड़ी से
लहू चूसते है चिचड़
भेंस की तरह आदमी भी हो जाता है आदि
फिर कष्ट स्वाद में बदल जाता है
जिन्दगी घिसती है फिर
एक पत्थर से दुसरे पत्थर तक
अगरबतियाँ जलाने में,
आरती करने के वक़्त
ये दीमक ज्यादा भूखे होते हैं
No comments:
Post a Comment