कुछ दिन होते है
बुकमार्क जैसे
हमेशा उन दिनों को लौट जाने का
मन करता है
कुछ दिन होते है
खाली खाली से
जूठे बर्तनों की तरह ,
किस और की चिठ्ठी
जैसे तुम्हारे घर आ गयी हो ,
किसी अस्वीकृत प्रार्थना पत्र जैसे
शाम होते ही
जिसके कोने पे अपने हस्ताक्षर
कर
टांग देते हो रात की खूंटी पे.....
बुकमार्क जैसे
हमेशा उन दिनों को लौट जाने का
मन करता है
कुछ दिन होते है
खाली खाली से
जूठे बर्तनों की तरह ,
किस और की चिठ्ठी
जैसे तुम्हारे घर आ गयी हो ,
किसी अस्वीकृत प्रार्थना पत्र जैसे
शाम होते ही
जिसके कोने पे अपने हस्ताक्षर
कर
टांग देते हो रात की खूंटी पे.....
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