बाहर सड़क पे
एक जैसे
हरे पत्तो वाले दरख्तों के बीच
एक दरखत ऐसा भी है
जो
खून जैसे पत्तो से लथपथ
सर उठाकर खड़ा है
वो क्रांतकारी
और प्रयोगवादी लगता है
और इधर
एक कमरे के कोने में
बैठे एक व्यक्ति की ,
जिसने कई किताबे लिख डाली ,
प्रतिक्रिया
एक बन्दर से भी कम है
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