कल शहर में एक बड़ा कवि आया
सभी कविता की तरह सज कर आये
एक लड़की तो अपने बाल भी सीधे करवाके आई
सबसे जयादा वही लड़की उलझी लगी मुझे
अपनी अपनी किताब हाथों में
मेहँदी लिपस्टिक ,नए घाघरे
आँखों में मस्कारा
हर दुकान का रंग आज
इस कमरे में था
कवि के भारी शबद गिरे
वाह वाह हुयी
तालियों का मुजरा हुआ
कवि के साथ चाय पी
उसकी पहली और आखरी प्रेमिका के बारे में पूछा
कुछ तस्वीरें खैंच वाई
जो बाद में फेसबुक भी लगी
सारे दोस्तों को टैग किया गया
मगर किसी को समझ नही आया
किसी को याद नहीं
कवि ने कहा क्या था
बस अपनी हर अफवाह में उस कवि का नाम था
कवि शहर से गूंगा होकर चला गया
I loved this one too. Nida Fazli came to my city as well..recited the same poems that he recited in Chandigarh but I never thought someone could have pondered over it so much so that he could give a form of poem to him and his visit. Loved this one too, poet :) keep writing :)
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