Tuesday 23 July 2013

Translating a poem


मुझे एक ऐसा घर दो जो मेरा न हो ,
जहाँ मैं आ और जा सकूँ 
बिना किसी सुराग के ,

कभी भी चिंता किये बिना 
नलसाजी ,
पर्दों के रंग ,
बिस्तर के पास किताबों के बेसुरेपन की ,
एक घर जो मैं पहन सकूँ हलके से ,
जहाँ कमरे बंद न हो
कल की बातों से ,
जहाँ आत्मा फूली हुयी न हो
दरारे भरने के लिए

एक घर , इस शरीर जैसा
कितना अनजान जब मैं सम्बन्ध रखने की कोशिश करूँ,
कितना सत्कार करने वाला
जब मैं निश्चय करूँ
मैं सिर्फ देखने आई हूँ
-ARUNDHATHI SUBRAMANIAM

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