Monday 1 April 2013

HOW DID U SLEEP LAST NIGHT ??


कभी यूँ भी तो  होता होगा 
आप आखें बंद करके खुद को धोखा दे रहे होंगे 
की सो रहे हो 
असल में 
ज़हन भटक रहा होता है 
एक ख्याल  से दुसरे ख्याल तक 
सोच की चीलें एक  एक करके उतरतीं 
और नोचती रहती 
कभी बाएँ कभी दायें 
जिस्म लुडकता रहता
सिसिफियन ज़हन दोड़ता रहता 
सर से लेकर पाँव तक 
तकिये को हर जगह 
अडजस्ट  करने की 
कोशिश करते 
नींद माथे पे बैठती मगर 
 आखं में नहीं उतरती 
गुस्से में मुह चादर में लपेट लेते 
फिर अचानक वक़त याद आता 
अँधेरे में हाथ मेज तक सरकता 
घडी उठती 
आखों की थोड़ी सी खिड़की खुलती 
वक़्त बर्फ की तरह जमा जमा सा लगता 
मछर कान पे चीयर लीडर्स की तरह नाचते  
ज़रा सा पासा पलटके 
बाजु पे सर रख कर 
ज़हन में कीलें ठोकते 
शायद कहीं रुक जाए 
जब ज़रा सी आखं डूबने लगती 
पैर पे चींटी चढ़ जाती 
जो बस पैर की एक रगड़ में मसल दी जाती 
सारी रात
 दांत के दर्द की तरह कटती 
सुबह उठते 
गुजरी रात एक मजाक जैसी लगती 
नींद की सारी अठन्नियां बिस्तर  पे 
बिखरी मिलती 
कभी यूँ भी होता होगा ..............

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