Monday 1 April 2013

Translating NISSIM EZEKIE



सिर्फ यादाशत से आँका जाये तो ,
हमारा प्रेम संतुष्ट था 
जब बम फूटा था कश्मीर में ;
मेरी जिन्दगी भी टूट चुकी थी 
और मिल गयी थी तुम्हारी में .

युद्ध बड़ी बात नहीं थी 
यधपि हमने ध्यान देने की कोशिश की ,
मौसम ,समय ,स्थान ने
अपने रोज के नाम अस्वीकृत कर दिए .
एक दिन तुमने कहा ,
'अचानक मैं बड़ी हो गयी हूँ '.
कीमत सिर्फ एक हज़ार चुम्बन थी .

कोई भी व्यक्ति बवंडर हो सकता है,
कोई भी औरत बिज़ली ,
परन्तु बसे हमें ले जाती हैं हमारी मुलाकात तक,
रेल गाड़ियाँ हमारे गंतव्य तक ,
इन सब मे और कैफ़े में ,
समुंदर किनारे
पार्क में बेंच पे,
हमारा संगीत बना था .

मैं कहता हूँ तुम्हे रुकने को
और इसे दुबारा सुनने को
परन्तु तुम आगे घूम जाती हो
कोई और संगीत सुनने को .
ये सच है
हम गुंजों पे जिन्दा नहीं रह सकते .

दस हज़ार मील दूर
तुम बन जाते हो चिठियों की बौछार ,
एक तस्वीर , एक अखबार की कतरन
पेंसिल के टिप्पणी के साथ रेखांकित की हुयी ,
और रात की गंध .

मेरे जनम और पुनर्जन्म के
इस गंदे ,अशिष्ट शहर में
तुम एक नया तरीका थी
सच पे हसंने का .

मैं तुम्हे वापिस चाहता हूँ
कठोर ख़ुशी के साथ
जो तुम हलके से पहनती हो ,
तुम्हारे कंधे ,स्तन
और जंघा सहारा दिए हुए .

परन्तु तुम इसे तोड़ने के लिए पूछती हो.
तुम्हारी नवीनतम चिठी कहती है :
'मैं रामानुजन की अनुवादित कन्नड़ धार्मिक कविता
संग्लन कर रही हूँ :
"इश्वर खेल रहा है
अगनी की पट्टियों के साथ "
मैं भी खेलना चाहती हूँ अग्नि के साथ .
मुझे जल जाने दो . '

No comments:

Post a Comment