Monday 1 April 2013

POEM

जब पैदा हुआ था 
शायद माँ ने सबसे पहले 
मारी होगी कानो में 
शब्दों की फूंक 
तोड़ते ,समेटते 
तुतलाते 
कई साल लग गए होंगे 
उस फूंक को 
होटों पे टिकाते 
जब भी रोने के बहाने 
अपनी जिद पूरी करने का प्रयास
करता
माँ शब्दों में उलझा देती
जिस दिन ये अहसास हुआ था
उसी दिन शब्दों से प्यार हुआ था
और शब्दों की ताकत का अहसास भी...

जब शब्दों का थप्पड़ पड़ता है
देर तक निशाँ रहता है
देख भी नहीं सकते और
दिखा भी नहीं सक

No comments:

Post a Comment