Monday 1 April 2013

POEM

कुछ दिन होते है 
बुकमार्क जैसे 
हमेशा उन दिनों को लौट जाने का 
मन करता है 
कुछ दिन होते है 
खाली खाली से 
जूठे बर्तनों की तरह ,
किस और की चिठ्ठी
जैसे तुम्हारे घर आ गयी हो ,
किसी अस्वीकृत प्रार्थना पत्र जैसे
शाम होते ही
जिसके कोने पे अपने हस्ताक्षर
कर
टांग देते हो रात की खूंटी पे.....

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