Monday 15 April 2013

Translating Imtiaz Dharker's poem


 रातभर मैंने लिखे 
सकेंत चिन्ह तुम्हारी त्वचा पे 
सारे अक्षर तुम्हारे कन्धों ,
पीठ 
और रीड की हड्डी तक  ,
तुमने उन्हें कभी नहीं देखा 
न ही 
तुमने मेरी पीठ पे लिखे 
कभी नहीं पाए शब्दों के टुकड़े 
मैंने छोड़े थे 
दरारों में टिका के 
तुम्हारी बगल में लटकाके 

नहाने से पहले हर सुबह 
मैंने खुद को टटोला 
सब जगह 
कुलहो , टांगो 
अँगुलियों के बीच 

शायद ऐसा हो 


एक भी पंक्ति नहीं तुम्हारी तरफ से यधपि 
एक शब्द भी नहीं ..


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